देखिए शरद पूर्णिमा का चांद निकल आया है। यूं तो हर पूर्णिमा पर चांद गोल नजर आता है परंतु शरद पूर्णिमा की चांद की बात ही कुछ और है।कहते हैं कि इस दिन चांद की किरणें धरती पर अमृतवर्षा करती हैं।
आशिवन शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं और इस साल यह 29 अक्तूबर यानि आज है।इसे कोजागरी और रास पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन चांद और सत्य भगवान की पूजा होती है ,व्रत रखा जाता है और कथा सुनी जाती है। किसी – किसी स्थान पर व्रत को कौमुदी पूर्णि मा भी कहते हैं। कौमुदी का अर्थ है चांद की रोशनी। इस दिन चांद अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। कुछ प्रांतों में खीर बनाकर रात भर खुले आसमान के नीचे रखकर सुबह खाते हैं। इसके पीछे भी यही मान्यता है कि चांद से अमृतवर्षा होती है।
इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं क्योंकि इसी दिन श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास की शुरूआत की थी। इस पूर्णिमा पर व्रत रखकर पारिवारिक देवता की पूजा की जाती है। रात को ऐरावत हाथी (सफेद हाथी) पर बैठे इन्द्र देव और महालक्ष्मी की पूजा होती है। कहीं कहीं हाथी की आरती भी उतारते हैं। इन्द्र देव और महालक्ष्मी की पूजा में दीया , अगरबत्ती जलाते हैं और भगवान को फूल चढ़ाते हैं।इस दिन कम से कम सौ दीये जलाते हैं और अधिक से अधिक एक लाख । लक्ष्मी और इन्द्र देव रात भर घूम कर देखते हैं कि कौन जाग रहा है और उसे ही धन की प्रापित होती है।इसलिए पूजा के बाद रात को लोग जागते हैं।अगले दिन पुन: इन्द्र देव की पूजा होती है।
यह व्रत मुख्यत: महिलाओं के लिए है।महिलाएं लकड़ी की चौकी पर स्वसितक का निशान बनाती हैं और उस पर पानी से भरा कलश रखती हैं।गेहूं के दानों से भरी कटोरी कलश पर रखी जाती है। गेहूं के तेरह दाने हाथ में लेकर व्रत की कथा सुनते हैं।
बंगाल में शरद पूर्णिमा को कोजागोरी लक्ष्मी पूजा कहते हैं। महाराष्ट्र में कोजागरी पूजा कहते हैं और गुजरात में शरद पूनम।
आइए इसके कुछ और रस्मों पर नजर डालें-
- भगवान को खीर चढ़ाना ,
- पूर्णिमा की चांद को खुली आंखों से नहीं देखना। खौलते दूध से भरे बर्तन में चांद देखते हैं
- चन्द्रमा की रोशनी में सूई में धागा डालना ,
- खीर,पोहा,मिठाई रात भर चांद के नीचे रखना।
शरद पूर्णिमा का चांद बदलते मौसम अर्थात मानसून के अंत का भी प्रतीक है।
इस दिन चांद धरती के सबसे निकट होता है इसलिए शरीर और मन दोनों को शीतलता प्रदान करता है। इसका चिकित्सकीय महत्व भी है जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।
प्रत्येक प्रांत में शरद पूर्णिमा का कुछ न कुछ महत्व अवश्य है।विभिन्न स्थानों पर अलग अलग भगवान को पूजा जाता है परंतु अधिकतर स्थानों में किसी न किसी रूप में लक्ष्मी की पूजा अवश्य होती है।